ग्रहण करने पर शब्द ज्ञान है और स्पर्श ग्रहण करने पर स्पर्श ज्ञान है ।
5.
स्वेद क्षय होने पर रोमकूप का अवरोध, त्वचा की रुक्षता, त्वचा का फटना, स्पर्श ज्ञान न होना तथा रोमपात होता है ।।
6.
आकाश सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंश से श्रवण ज्ञान, वायु से स्पर्श ज्ञान, अग्नि से दृष्टि ज्ञान जल से रस ज्ञान और पृथ्वी से गंध ज्ञान उत्पन्न होता है.
7.
जैसे शव्द ज्ञान के लिए कान, स्पर्श ज्ञान के लिए त्वचा, रूप ज्ञान के लिए नेत्र, रस के ज्ञान के लिए जिह्वा, तथा गन्ध के ज्ञान के लिए नासिका का विकास हुआ है।